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Wednesday 7 October 2015

योगिनी एकादशी का धार्मिक महत्त्व



हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष धार्मिक महत्त्व है। हर महीने दो 'एकादशी' आती हैं। इस प्रकार एक महीने में दो बार और बारह महीनों में 24 एकादशियां आती हैं। एकादशी का व्रत बहुत पुण्य फ़लदायी होता है। आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहते हैं। इस व्रत को करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और ये व्रत यह इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति देने वाला है।

कथा        
          धर्मराज युधिष्ठिर ने जब ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी के व्रत का माहात्म्य सुना तो उनके मन मे और भी कुछ जानने की इच्छा हुई तो वे बोले भगवन मुझ पर कृपा करें और आषाढ़ कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा भी सुनाइये और इसका क्या माहात्म्य है ? तब भगवान श्रीकृष्ण बोले कि हे राजन! आषाढ कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम योगिनी एकादशी है। इस व्रत को करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यह इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति देने वाला व्रत है। मैं तुमसे पुराणों में वर्णन की हुई कथा कहता हूँ। ध्यानपूर्वक सुनो।

                   स्वर्गधाम मे अलकापुरी नामक नगर था जिसमे कुबेर नाम का एक राजा राज्य करता था। वह शिव भक्त होने के कारण नित्य-प्रतिदिन अपने आराध्य देव भोले नाथ की पूजा किया करता था। हेम नाम का एक माली पूजन के लिए उसके यहाँ फूल लाया करता था। हेम की विशालाक्षी नाम की सुंदर स्त्री थी। एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प तो ले आया लेकिन कामासक्त होने के कारण वह अपनी स्त्री से हास्य-विनोद तथा रमण करने लगा।

                    इधर राजा उसकी दोपहर तक राह देखता रहा। अंत में राजा कुबेर ने सेवकों को आज्ञा दी कि तुम लोग जाकर माली के न आने का कारण पता करो, क्योंकि वह अभी तक पुष्प लेकर नहीं आया। सेवकों ने कहा कि महाराज वह पापी अतिकामी है, अपनी स्त्री के साथ हास्य-विनोद और रमण कर रहा होगा। यह सुनकर कुबेर ने क्रोधित होकर उसे बुलाया। हेम माली राजा के भय से काँपता हुआ उपस्थित हुआ। राजा कुबेर ने क्रोध में आकर कहा- अरे पापी! नीच! कामी! तूने मेरे परम पूजनीय ईश्वरों के ईश्वर श्री शिवजी महाराज का अनादर किया है, इस‍लिए मैं तुझे शाप देता हूँ कि तू स्त्री का वियोग सहेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा।

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कुबेर के शाप से हेम माली का स्वर्ग से पतन हो गया और वह उसी क्षण पृथ्वी पर गिर गया। भूतल पर आते ही उसके शरीर में श्वेत कोढ़ हो गया। उसकी स्त्री भी उसी समय अंतर्ध्यान हो गई। मृत्युलोक में आकर माली ने महान दु:ख भोगे, भयानक जंगल में जाकर बिना अन्न और जल के भटकता रहा। रात्रि को निद्रा भी नहीं आती थी, परंतु शिवजी की पूजा के प्रभाव से उसको पिछले जन्म की स्मृति का ज्ञान अवश्य रहा। घूमते-घ़ूमते एक दिन वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुँच गया और विलाप करने लगा तव ऋषि बोले कि तुम्हारी इस गति के पीछे क्या कारण है और तुमने ऐसा कौन-सा पाप किया है, जिसके प्रभाव से यह हालत हो गई। 

              हेम माली ने सारा वृत्तांत कह सुनाया। यह सुनकर ऋषि बोले- निश्चित ही तूने मेरे सम्मुख सत्य वचन कहे हैं, इसलिए तेरे उद्धार के लिए मैं एक व्रत बताता हूँ। यदि तू आसाढ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी नामक एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करेगा तो तेरे सब पाप नष्ट हो जाएँगे। यह सुनकर हेम माली ने अत्यंत प्रसन्न होकर मुनि को साष्टांग प्रणाम किया। मुनि ने उसे स्नेह के साथ उठाया। हेम माली ने मुनि के कथनानुसार विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से अपने पुराने स्वरूप में आकर वह अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।


Dr. Ved Prakash Dhyani